Maha Kumbh Mela 2025 || महाकुंभ का मतलब क्या होता है?

“कुंभ मेला (Maha Kumbh Mela 2025)के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को जानें, जो भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है और हर 12 साल में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। इसके ज्योतिषीय महत्व, पवित्र स्नान rituals, और लाखों श्रद्धालुओं की आध्यात्मिक शुद्धि की तलाश के बारे में जानें। इस भव्य त्योहार के इतिहास, मिथकों और परंपराओं का अन्वेषण करें, जो हिंदू आस्था और एकता का प्रतीक है।”

Maha Kumbh Mela 2025 || महाकुंभ का मतलब क्या होता है?

 कुंभ मेला कुंभ  मेला  हमारे  भारत का विशाल मेला है यह भारत में आयोजित किया जाता है इसमें करोड़ो की जनसंख्या जाती है करोड़ों श्रद्धालु हर 12 वर्ष में प्रयागराज, हरिद्वार , उज्जैनऔर नासिक में से किसी एक स्थान पर जाते हैं जिसमें एकत्र होते हैं और पवन नदी में स्नान करते हैं प्रत्येक 12 वर्ष में अतिरिक्त प्रयाग में दो कुंभ के पर्वों के बीच में 6 वर्ष का अंतराल में अर्ध कुंभ भी होता है !  2013 के कुंभ के बाद 2019  में  प्रयाग में अर्ध कुंभ मेले का आयोजन हुआ था और  अब  2025 में पुणे कुंभ मेला आयोजन होने जा रहा है! ज्योतिषों के अनुसार यह मेला  पूर्णिमा के आरंभ  होता है मकर संक्रांति त्योहार  पर इसका  विशेष  महत्व  होता  है जब सूर्य ,चंद्रमा व वृश्चिक  राशि और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को कुंभ का मेला कहा जाता है और इस दिन के विशेष मंगलकारी माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान आत्मा को उच्च लोगों की प्रति सहजता से हो जाती है माना जाता है स्नान से साक्षात स्वर्ग के दर्शन हो जाते हैं l

कुंभ का शाब्दिक अर्थ “घड़ा सुराही बर्तन”  है यह वैदिक में पाया जाता है अर्थ अक्सर पानी की विषय में पौराणिक कथाओं  के बारे में दर्शाता है मेला का शब्द का अर्थ है किसी एक स्थान पर मिलना एक साथ चलना सभा में हो या फिर विशेष रूप से  सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना  यह शब्द ऋग्वेदऔर अन्य प्राचीन हिंदू ग्रंथो में भी पाया जाता है किस प्रकार कुंभ का मेला अमर का मेला है l

ज्योतिष महत्व

यह पौराणिक विश्वास जो कुछ भी हो सकता है जैसे की ज्योतिषों के अनुसार कुंभ का साधन महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा नदी के जल को औषधि रूप में निर्माण करती है l तथा उन दिनों यह अमृत तत्वहो जाती है ,यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों की करोड़ों की जनसंख्या में हम लोग आते हैं आध्यात्मिक दृष्टि सेअर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है ! इसको हिंदू त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है, यहां अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले   सबसे अधिक संख्या होती है l

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